Ottawa·क़ाश मैंने ये कहा होता

लोगों ने हमारी संस्कृति और उच्चारण का मजाक उड़ाया, लेकिन हमें यहाँ आने का कोई अफसोस नहीं है |

कनाडा में बसने के सालों बाद, मानसी सेठी और उनके पिता नवीन सेठी अपनी अनकही कहानियाँ और दर्द बांटते हुए।

देखिये मानसी और नवीन सेठी की भारत से दुबई और फिर ओटावा तक की यात्रा और उनकी दर्द भरी गाथा

Mansi Sethi tells her dad Naveen that though she experienced racism growing up, she's grateful he chose to immigrate to Canada

3 years ago
Duration 11:29
Watch this Indo-Canadian family's full conversation in the next in our series, "The Things I Wish I Said." देखिये मानसी और नवीन सेठी की भारत से दुबई और फिर ओटावा तक की यात्रा और उनकी दर्द भरी गाथा

द थिंग्स आई विश आई सेड (क़ाश मैंने ये कहा होता) एक ऐसी श्रृंखला है जो एशियाई मूल के तीन ओटावा स्थित परिवारों के माता-पिता और बच्चों के बीच हुई नस्लवाद और उनकी पहचान को लेकर हुई बातचीत के निजी पहलुओं को दर्शाती है।

ऊपर दिए गए वीडियो में देखिये भारतीय-मूल के एक कनाडाई परिवार की पूरी बातचीत। नीचे पढ़िये उस बातचीत का एक हिस्सा, जिसे शैली और स्पष्टता के लिए संक्षिप्त और संपादित किया गया है।

CBC के अनुकुल ठाकुर द्वारा अनुवाद


मानसी सेठी ने अपने पिता को कभी ये नहीं बताया कि चौथी कक्षा में कुछ लड़कों ने उसका दोपहर का भोजन छीनकर बाहर फेंक दिया था ।

"मैं कक्षा में आलू का परांठा खा रही थी," 18 वर्षीय मानसी ने हाल ही में अपने पिता नवीन सेठी को बताया। "अचानक एक लड़का मेरे पास आया। उन लड़कों के झुण्ड में से एक ने कहा , 'अरे ,ये देखो तो सही ये क्या खा रही है।' मेरे हिसाब से परांठे में शायद बाकी खानो से कुछ अलग सी गंध आ रही थी ।"

"पता नहीं क्या हुआ पर [उसने] उसे हाथ में उठाया, रोल सा लपेटा और कूड़ेदान में फेंक दिया।"

नवीन यह सुनकर भौचक्का रह गया, और पूछा।

"क्या? क्या किया उसने?"

मानसी ने बताया "जी उसने ऐसा ही किया था।"

ओटावा के एक स्कूल में मानसी सेठी के बचपन की एक तस्वीर। मानसी ने उसके साथियों के द्वारा उसके खाने, उच्चारण और संस्कृति का मज़ाक उड़ाने का अनुभव किया। (मानसी सेठी)

"ऐसी घटनाओं का कक्षा 4, 5, या 6 में होना मुझे बिलकुल याद नहीं है," कहते हुए नवीन ने अपनी बेटी को देखा और उसकी आँखें भर आईं।

"ये सब, मैं घर आकर, आप लोगों को बताती भी क्या," मानसी ने जवाब दिया।

मानसी, बाएं, एक आपबीती नस्लवादी घटना के बारे में नवीन को पहली बार बताते हुए, और नवीन, दाएं, भावुक होते हुए। (CBC)

सीबीसी ओटावा की, क़ाश मैंने ये कहा होता, परियोजना के तहत, सेठी परिवार ने साल 2012 में ओटावा आ बसने के बाद अपनी ज़िन्दगी की किताब सी खोल दी, जिसके कई पन्ने नस्लवाद की ज़हरीली स्याही से सने हुए हैं जिनका सामना उन्होंने भारतीय-कैनेडियनस के रूप में किया।

भारत में जन्मे और पले-बढ़े नवीन ने कनाडा को सफलता पाने और सेवानिवृत्त जीवन बिताने की जगह के रूप में देखा था - एक ऐसी जगह जिसे उनके बच्चे अपना घर बुला सकें और जीवन में बेहतर अवसर पा सकें।

इसीलिए दुबई की प्रमुख आईटी कंपनियों में 15 साल के सफल अनुभव के बाद भी , नवीन और उनकी पत्नी ने अपने परिवार को कनाडा लाने का फैसला किया। उनका कहना है की वो अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं कि उन्होंने यहाँ जो नस्लवाद अनुभव किया वो अन्य स्थानों की तुलना में मामूली सा लगता है।

नवीन ने कहा , "ऐसी कोई जगह नहीं है जहां नस्लवाद मौजूद ना हो क्योंकि आखिर हम सभी इंसान हैं और हर किसी के कुछ न कुछ पूर्वाग्रह होते हैं।"

हालांकि नवीन और उनकी पत्नी को भारत में परिवार की याद तो आती है , पर उन्हें कनाडा आने पर कोई पछतावा नहीं है।

सेठी परिवार भारत में। मानसी ने अपने माता-पिता को अपने परिवार को छोड़ने और कनाडा आने का मुश्किल फैसला लेने के लिए धन्यवाद दिया। (मानसी सेठी)

और मानसी, वो अपने माता-पिता का धन्यवाद करना चाहती थी।

मानसी ने कहा "मैं आप लोगों को बहुत धन्यवाद नहीं बोलती। मुझे लगता है कि आप अक्सर नहीं बताते कि आपको कितना कुछ पीछे छोड़कर आना पड़ा, ताकि हम यहाँ आकर ज़िन्दगी की एक नई शुरुआत कर सकें।"