भारत में हिंदू राष्ट्रवाद की आलोचना करने पर कैनेडा में शिक् षकों का उत्पीड़न, मिली जान से मारने की धमकी
शिक्षकों को स्थानीय प्रवासी समूहों और विदेशी ट्रोल से ऑनलाइन नफरत मिली
चिन्नैया जंगम ने अपना कंप्यूटर खोला और एक गोरे व्यक्ति के जूते साफ करते हुए खुद का एक कार्टून देखा।
वे औटवा की कार्लटन यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर हैं, उन्होनें कहा कि उन्हें पिछले पांच वर्षों में इस तरह के हजारों घृणित ईमेल मिले, साथ ही उनके कार्यालय के फोन पर अपमानजनक वॉयसमेल भी मिले। उन्होंने कहा कि उनके अकादमिक लैक्चरों का विरोध कर रहे समूहों द्वारा उन्हें व्यक्तिगत रूप से भी प्रेशान किया गया क्योंकि वे उसकी राजनीति से असहमत हैं।
जंगम ने कहा, "कल्पना करें कि हर सोमवार को आप उठते हैं और उस तस्वीर को देखते है ं।" "आपका आधा दिन इससे निपटने में बीत जाएगा।"
उन्होंने कहा, अपने परिवार को बचाने की कोशिश में उन्होंने जवाब में अपने अधिकांश सोशल मीडिया अकाउंट्स को आंशिक रूप में बंद कर दिया।
जंगम कई कनेडियन शिक्षकों में से एक हैं, जिनका काम भारत से संबंधित है, जो कहते हैं कि उन्हें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके द्वारा समर्थित राईट-विंग राजनीतिक विचारधारा हिंदुत्व के तहत देश की राजनीति की आलोचना करने के लिए प्रवासी समूहों द्वारा परेशान किया और धमकाया जा रहा है।
जंगम दलित हैं, जो हिंदू जाति व्यवस्था का सबसे निचला तबका है। वह कहते हैं."मुसलमानों और दलितों के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है" यह एक समूह है जिसे पहले "अछूत" कहा जाता था क्योंकि उनकी निम्न स्थिति का मतलब था कि उन्हें दूसरों द्वारा छुआ भी नहीं जाता था।
"मैं उस पृष्ठभूमि से आता हूं। मेरी इस बारे में आवाज़ उठाने की सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है।"
कनेडियन एंटी-हेट नेटवर्क के एक पूर्व शोधकर्ता स्टीवन झो, जिन्होंने प्रवासी समूहों के भीतर बहुत राईट आंदोलनों का वर्णन किया है, ने कहा कि हिंदुत्व हिंदू धर्म का एक सतही राजनीतिकरण है।
झो ने कहा, इसका उद्देश्य "भारतीय समाज को एक ऐसे समाज के रूप में ढालना है जो हिंदुओं के लिए सबसे पहले और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों से ऊपर होना चाहिए।"
झो ने कहा कि हिंदुत्व एक आधुनिक राजनीतिक विचारधारा है जो हिंदू वर्चस्व का समर्थन करती है और भारत, जो एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र है, को एक जातीय-धार्मिक देश में बदलना चाहती है।
हालांकि हिंदुत्व की सर्वोच्चतावादी विचारधारा की जड़ें हिंदू धर्म में हैं, इस बात पर बहस है कि क्या विचारधारा के राजनीतिक पहलुओं को इसके धा र्मिक और सांस्कृतिक आधार से अलग किया जा सकता है। कई शिक्षकों का तर्क है कि यह अलग है।
ग्रेटर टोरंटो एरिया में एक स्व-वर्णित हिंदू समर्थन समूह, द्वारपालकास के निदेशक गोपाल कृष्ण ने कहा कि कनेडियन हिंदू धर्म को नहीं समझते हैं और वर्तमान में "गैर-हिंदू धर्मों से बात करके और हिंदू धर्म को नीचा दिखाने" से अपना दृष्टिकोण प्राप्त कर रहे हैं।
सांप्रदायिक हिंसा
झो ने कहा कि हिंदुत्व की विचारधारा ने भारत में मुसलमानों और ईसाइयों जैसे अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दिया है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी कथित हिंदुत्व समूहों को धार्मिक और जातीय हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
दिसंबर 2021 में, उत्तरी भारतीय शहर हरिद्वार में, हिंदू धर्मगुरुओं ने खुले तौर पर हिंदुत्व द्वारा आयोजि त एक कार्यक्रम में मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार का आह्वान किया। और मार्च में, एक भारतीय अदालत ने स्कूलों में हिजाब के खिलाफ प्रतिबंध को बरकरार रखा। यह मामला अब भारत के सुप्रीम कोर्ट के समक्ष है।
झो ने कहा कि चाहे हिंदुत्व के कारण कैनेडा में शारीरिक हिंसा नहीं हुई है, यह विचारधारा "हिंसक बयानबाजी" हो गई है और इसका उपयोग भारतीय राजनीति की शैक्षिक आलोचना को शांत करने के लिए किया जाता है।
CBC न्यूज़ ने कैनेडा के 18 शिक्षकों से बात की, जो कहते हैं कि हिंदू राष्ट्रवाद का समर्थन करने वालों द्वारा उन्हें परेशान किया गया या धमकियां दी गईं। उनके उत्पीड़न में अपमानजनक ईमेल से लेकर मौत और बलात्कार की धमकियां तक शामिल थीं।
अधिकांश लोग बढ़ते उत्पीड़न, भारत के दौरे से वंचित किए जाने और अपने देश में अपने प्रियजनों को खतरे में डालने के डर से सार्वजनिक रूप से बोलना नहीं चाहते थे।
जनवरी के अंत में, टोरौंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी ने भारत से संबंधित परियोजनाओं पर काम करते समय बढ़ती चुनौतियों और शिक्षकों के सामने आने वाले खतरों पर चर्चा करते हुए एक ऑनलाइन मंच का आयोजन किया। प्रोफेसरों ने नोट किया कि समन्वित ऑनलाइन हमले अक्सर मोदी और भाजपा की किसी भी आलोचना का अनुसरण करते हैं। जंगम वक्ताओं में से एक थे।
उन्होंने कहा कि उन्हें विदेशों में और कनाडा में राईट-विंग हिंदू समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है क्योंकि वह कैनेडा में कार्यरत होने वाले शिक्षकों में से एक हैं जो दलित हैं।
जंगम ने कहा कि 2014 में मोदी और भाजपा के सत्ता में आने के बाद से दलितों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव बढ़ा है।
"दलित भारतीय आबादी का लगभग 20 प्रतिशत हैं। इसका मतलब है कि 250 मिलियन से अधिक। सदियों से इन लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है और उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया है", जंगम ने कहा।
प्रोफेसर, मोदी सरकार और अल्पसंख्यकों के साथ उसके व्यवहार की आलोचना में मुखर रहे हैं और उनके चरित्र को कई ऑनलाइन हमलों द्वारा लक्षित किया गया है।
उत्पीड़न के बावजूद, जंगम ने पीछे हटने से इनक ार कर दिया।
उन्होंने कहा, 'हमें सत्ता से सच बोलना होगा।'
भारत में भाजपा के सत्ता में आने के आठ साल से हिंदुत्व का समर्थन करने वाले समूहों का हौसला बढ़ा है, फ्रेंको-भारतीय पत्रकार इंग्रिड थेरवाथ ने कहा, जो 20 से अधिक वर्षों से हिंदू चरमपंथ पर शोध कर रहे हैं।
थेरवाथ ने कहा कि भारत में स्थापित बड़े ऑनलाइन नेटवर्क विदेशों में शिक्षकों को परेशान करते हैं।
विदेशों में हिंदू राष्ट्रवाद कैसे फैलता है
हिंदुत्व भारत में अच्छी तरह से स्थापित है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का आधार है, जो 1925 में स्थापित एक अर्धसैनिक राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन है, जिसमें कई सहायक संगठन और अनुमानतः पांच मिलियन से अधिक लोगों की सक्रिय सदस्यता है, जिसमें मोदी और सरकार में भाजपा के अधिकांश मंत्री शामिल हैं।
भाजपा के RSS के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं। थेरवाथ ने कहा कि RSS नेटवर्क इतालवी फासीवाद के सिद्धांतों पर स्थापित किया गया था, वैचारिक रूप से नाज़ीवाद के समान है और भारतीय प्रवासियों द्वारा विदेशों में निर्यात किया गया था। उन्होंने कहा कि RSS के अंतरराष्ट्रीय संगठन की पहली कनेडियन शाखा टोरौंटो में 1970 के दशक में स्थापित की गई थी।
थेरवाथ ने कहा कि कनेडियन हिंदू चरमपंथी समूह अक्सर सौम्य सांस्कृतिक संगठन बनाते हैं और उनका उपयोग चरम राईट विचारों को बढ़ावा देने के लिए करते हैं।
थेरवाथ ने कहा, "वे तथ्यात्मक रूप से नफरत करने वाले समूह हैं," और कहा कि यह समूह भारत में नफ़रत भरी बोली और भेदभाव को बढ़ावा देते हैं, ऑनलाइन उत्पीड़न में भाग लेते हैं और विभिन्न चैरिटी के माध्यम से सांप्रदायिक और राजनीतिक परियोजनाओं के लिए विदेशों से भारत में फंड भेजते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरौंटो में दक्षिण एशिया सभ्यताओं के केंद्र की निदेशक क्रिस्टिन प्लाइस ने पिछले सितंबर में समकालीन भारतीय राजनीति पर एक ऑनलाइन सम्मेलन का समर्थन करने के बाद खुद को ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में हिंदू राष्ट्रवादियों के निशाने पर पाया।
सम्मेलन का ऑनलाइन अभियान द्वारा लक्षित विरोध
डिसमैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व नामक वर्चुअल सम ्मेलन को मैकमास्टर, हार्वर्ड और प्रिंसटन सहित कैनेडा और संयुक्त राज्य भर में 50 से अधिक यूनिवर्सिटियों द्वारा समर्थन दिया गया था।
इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय विद्वानों ने हिंदुत्व के निहितार्थ पर चर्चा की - आधे से अधिक वक्ता और मध्यस्थ हिंदू थे। दलित और मुस्लिम वक्ताओं ने भी भाग लिया।
उत्पीड़न को रोकने के लिए, आयोजन समिति गुमनाम रही। सावधानियों के बावजूद, अल जज़ीरा ने बताया कि हिंदुत्व समूहों ने भाग लेने वाली यूनिवर्सिटियों को 13 लाख ईमेलों के साथ स्पैम करने का दावा किया है। उन्होंने निजी जानकारी ऑनलाइन पोस्ट की और कुछ अमेरिकी प्रतिभागियों को जान से मारने की धमकी मिली।
सम्मेलन की शुरुआत से पहले, यूनिवर्सिटी को अपने समर्थन को वापस लेने के लिए दबाव बनाने के प्रयास में लगभग पचास प्रदर्शनकारियों ने U ऑफ T परिसर में प्रदर्शन किया।
देखें: यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो का 'डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व' सम्मेलन (वैश्विक हिंदुत्व को खत्म करने के सम्मेलन) का विरोध:
विरोध के बाद, द्वारपालकों ने प्लाइस को ईमेल की एक श्रृंखला भेजी जिसने उसे डरा दिया। CBC को दिखाए गए एक ईमेल में, द्वारपालकों ने उस पर तालिबान से सहानुभूति रखने का आरोप लगाया और उसे चेतावनी दी कि वे "उसके बैकयार्ड में" हैं।
इसके बाद द्वारपालकों ने उसे एक फूड डिलीवरी गिफ्ट कार्ड भेजा, जिसे कैंपस पुलिस ने पलाइस को बताया कि अगर उसने कार्ड को एक्टिवेट किया तो उसके घर का पता पाने का प्रयास हो सकता है। परिसर की सेक्युरिटी को खतरों की रिपोर्ट करने के बाद, प्लाइस ने कहा कि उसे "अपने जीवन के बारे में सब कुछ बदलना पड़ा।"
प्रोफेसर को दी गई आत्मरक्षा की कक्षाएं
कैंपस सेक्युरिटी ने उसे एक पैनिक बटन दिया जो दबाए जाने पर बहुत ऊंचा अलार्म बजाता है।
उस ने अपने कार्यालय के घंटे बदल दिए, अपने आवागमन में बदलाव किया और आत्मरक्षा कक्षाओं में दाखिला लिया। उसके युनिवर्सिटी विभाग ने उसे अपने सहयोगियों की सुरक्षा में मदद करने के लिए अस्थायी रूप से अपने पाठ्यक्रम ऑनलाइन पढ़ाने के लिए कहा।
जब प्लाइस ने पुलिस को घटना की सूचना दी, तो उसे बताया गया कि उसकी शिकायत की जांच नफ़रत भरी बोली (hate speech) के रूप में की जा रही है।
प्लाइस ने कहा, "मुझे विभिन्न समूहों से अनगिनत ईमेल प्राप्त हुए जो प्रकृति में धमकाने वाले थे"
"लेकिन यह एकमात्र समूह था जिसने वास्तव में ऑनलाइन नफरत को वास्तविक दुनिया में ले जाने की कोशिश करने के लिए सीमा पार की।"
द्वारपालकों के निदेशक कृष्णा, जो कभी-कभी OMNI टेलीविज़न नेटवर्क पर एक सामुदायिक कार्यक्रम की मेजबानी करते हैं, उन्होंने ईमेल लिखना स्वीकार किया, लेकिन कहा कि वह प्लाइस को डराने की कोशिश नहीं कर रहे थे। इसके बजाय, कृष्णा ने कहा कि वह चाहते हैं कि उसे पता चले कि द्वारपालक उसे "उसकी बुद्धि को उज ागर करने" के लिए देख रहे थे।
भले ही यूनिवर्सिटी ऑफ टोरौंटो द्वारा प्रायोजित सम्मेलन को "डिसमैंटलिंग हिंदुत्व" कहा गया था, कृष्णा ने कहा कि यह आयोजन अपने सभी राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं में हिंदू धर्म पर हमला कर रहा था।
उन्होंने कहा, "वे (शिक्षाविद ) जो कर रहे हैं, वह यही है कि वे हिंदू धर्म को खत्म करना चाहते हैं।" "आप सभी दिशाओं से हम पर हमला करते हैं - मुस्लिम, दलित, [लिंग], शैक्षिक"
कृष्णा ने कहा कि प्लाइस इस कार्यक्रम को ''प्रायोजित करके कैनेडा के हिंदुओं के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दे रही है।"
हिन्दू धर्म की आलोचना को 'हिन्दूफोबिया' कहना
CBC न्यूज़ के साथ अपने साक्षात्कार में, कृष्णा ने हिंदू धर्म की आलोचना करने वाली किसी भी चीज को "हिंदूफोबिया" करार दिया।
उन्होंने कहा कि शिक्षक "विभाजनकारी विचार" स्थापित कर रहे हैं जिसका सीधा प्रभाव "भारत की सड़कों पर, हिंसा के रूप में पड़ता है।"
पत्रकार थेरवाथ इस विचार से असहमत हैं।
थेरवाथ ने इस दावे के बारे में कहा कि "यह गलत जानकारी है," कि भारत में हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, जहां उनकी आबादी 80 प्रतिशत से अधिक है। शोधकर्ता ने "हिंदुफोबिया" की तुलना श्वेत-विरोधी नस्लवाद की अवधारणा से की है।
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरौंटो में दक्षिण एशियाई इतिहास की प्रोफेसर मालविका कस्तूरी ने कहा कि जो लोग गंभीर रूप से भारत का अध्ययन करते हैं या हिंदुत्व से असहमत होते हैं, उन्हें उत्पीड़कों द्वारा तीन चीजों में से एक करार दिया जाता है: हिंदूफोबिक, भारतीय विरोधी या, यदि वे भारतीय मूल के हैं, तो राष्ट्र-विरोधी।
देखें: मालविका कस्तूरी बताती हैं हिंदुत्व 'ट्रोलिंग' कैसे काम करती है:
कस्तूरी ने कहा कि एक "हिंदुत्व सेना" ने उन्हें धमकियों भरी ईमेलों के साथ परेशान क िया है।
वह चाहती हैं कि कैनेडा की सरकार डराने-धमकाने को गंभीरता से ले, ठीक वैसे ही जैसे श्वेत वर्चस्ववादी समूहों से धमकियों को लेती है।
"यह एक कनेडियन मुद्दा है। कस्तूरी ने कहा, "यह दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक मुद्दा नहीं है।" "यह मानवाधिकारों का सवाल है।"
CBC न्यूज़ द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या RCMP कैनेडा में हिंदू राष्ट्रवाद के उदय की निगरानी कर रहा है, एक एजेंसी के प्रवक्ता ने ईमेल द्वारा कहा कि RCMP आंदोलनों या विचारधाराओं पर टिप्पणी या जांच नहीं करता है, ल ेकिन व्यक्तिगत आपराधिक गतिविधि की जांच करता है।
उन्होंने यह भी कहा कि कैनेडा के लोगों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि, "नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, जातीय मूल, लिंग, विकलांगता या यौन उन्मुखीकरण राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना उनकी हिफाज़त और सुरक्षा के लिए संभावित खतरों का सामना करते समय उनकी सहायता करने के लिए समर्थन तंत्र मौजूद हैं।"
"जो कोई भी ऑनलाइन या व्यक्तिगत रूप से खतरा महसूस करता है, उसे इन घटनाओं की रिपोर्ट अपनी स्थानीय पुलिस को करनी चाहिए।"
अवान्तिका आनंद, मार्नी लूक और टाइलर चीस से जानकारी के साथ।